Saturday, November 1, 2014

मन स्वच्छ तो सब स्वच्छ

स्वच्छता अभियान तबतक नहीं सफल हो सकता जबतक कि इस देश का प्रत्येक नागरिक इस कहावत को सही नहीं साबित करता- “मन चंगा तो कठौती में गंगा”। हर प्राणी चाहता है कि वह अपना जन्मस्थल, कर्मस्थली और धर्मस्थल साफ-सुथरा रखे। अपने इस नेक इरादे को सफल बनाने के लिए हर संभव प्रयासरत भी है। पर वह एक स्थान भूल बैठा है- वह है ‘मनस्थल’। इस अभियान में इसका कहीं जिक्र ही नहीं है। इसकी सफाई की तरफ उसका ध्यान आकर्षित ही नहीं हो रहा। सर्वप्रथम  उसे मन के भीतर की गंदगी को साफ करना होगा जिसकी साफ-सफाई किसी उत्सर्जन क्रिया के जरिए नहीं होती।

इर्ष्या, द्वेष, कुंठा, क्रोध, भय, मोह, घमंड आदि  ऐसे रोग हैं जो मन की गंदगी से उपजते है और दीमक की भांति मनुष्य का पूरा व्यकित्व चट कर जाते है- बंजर खेत की तरह, जहाँ न तो कोई सकारात्मक विचार पनपता है और ना ही कोई अच्छी सोच विकसित होती है; क्योंकि व्यक्तित्व ही विचारों की उपजाऊ जमीन होता है।

मन की मैल कोई प्लास्टिक का कचरा नहीं है जो कभी समाप्त ही नहीं हो सकती। इसकी सफाई करना तो और भी आसान है। पर यहां हर आदमी का सिद्धान्त उलट जाता है। वह यही सोचता है कि- जग सुधरेगा, पर हम नहीं सुधरेंगे। जिससे वह अपनी जड़ स्वयं खोदता है। कभी-कभी तो इसका परिणाम बहुत भयावह हो जाता है।

जब तक व्यक्तित्व रूपी जमीन को रोग मुक्त नहीं बनाएंगे तब तक स्वस्थ, स्वच्छ और सुन्दर समाज की कल्पना करना भी बेमानी है, स्वच्छता अभियान की सफलता तो अभी दूर की बात है। लेकिन जाने क्यों मनुष्य इस मलिनता से निवृत्त होना नहीं चाहता। बल्कि एक हथियार के रूप में आपसी रंजिश में इसका इस्तेमाल भी करता है। जो इस समाज के लिए नुकसानदेह ही नहीं बहुत शर्मनाक भी है।

मनुष्य एक प्रगतिशील और विवेकशील प्राणी है। उसके पास तो इन सभी समस्याओं का समाधान करने का संसाधन भी है। बस कमी है तो एक मजबूत ‘इच्छाशक्ति’ की। इसे हासिल करना भी उसके लिए बहुत आसान है; क्योंकि वह एक वैज्ञानिक है, एक योगी है और एक चिकित्सक भी है।  उसे अपने इस हुनर का इस्तेमाल कर पहले मन को चंगा कर अपने व्यक्तित्व को चमका लेना चाहिए। फिर तो बाकी गंदगी अपने-आप साफ हो जाएगी।

(रचना त्रिपाठी)

 

3 comments:

  1. साफ़ मन की सच्चाई चेहरे पर भी दिखती है।
    सार्थक विचार !

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  2. मन की सफाई तो होनी ही चाहिए पर आस पास की गन्दगी भी साफ़ होनी जरूरी है ... नज़र तो वही आती है सबसे पहले ...

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  3. सही है शुरुआत अपने ही मन-आँगन से होनी चाहिए ....सुन्दर सार्थक विचार … बधाई

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