Tuesday, October 1, 2013

बंदर के हाथ में बंदूक..

 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हालत दिनों-दिन बिगड़ती नजर आ रही है। इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ प्रदेश सरकार की बचकानी और संकुचित सोच है। ऐसा भी नहीं है की अखिलेश सरकार को राजनीति का क ख ग नहीं पता है। इनकी तो पैदाइश ही राजनीति कोंख की है। मेरठ के खेड़ा गांव में जो भी बखेड़ा हो रहा है उससे आज की तारीख में सबकी जुबान पर सिर्फ अखिलेश की बेवकूफी से एक के बाद एक लिए हुए निर्णय है जो जनता को बिल्कुल रास नही आ रहे हैं। विश्व हिन्दू परिषद द्वारा चौरासी कोसी परिक्रमा में शासन और प्रशासन ने सांप्रदायिक सौहार्द बनाये रखने के लिए जितनी तेजी दिखायी, उतनी ही तत्परता से मुज्जफरनगर दंगे को नियंत्रित क्यों न कर सकी? जनता से वोटों की भीख माँगने वाली सरकार को क्या दंगे कराने और मुआवजे बांटने के लिए चुना जाता है?

राहत शिविर में रहने वाली महिलाओं और लड़कियों के साथ छेड़खानी और दुष्कर्म के मामले में सरकार का 1090 नम्बर अब क्या काम करना बंद कर चुका है? मुज्जफरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों में पहले से ही अपने प्रियजनों को खो बैठने वाली महिलाओं के दु:ख क्या कम थे, जो उनके ऊपर लाठियां बरसाकर सरकार अपनी अराजक सोच का खुलेआम प्रदर्शन कर रही है? पुलिस भी सरकार के हरम में बैठी उसका नमक खाने की दुहाई देती नजर आ रही है। क्या इसी दिन के लिए जनता ने अपने राज्य की कमान एक युवा के हाथों सौपी थी? पुलिस का कहर जिस तरह खेड़ा गांव के महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों पर बरपा हो रहा है उससे यह स्पष्ट है कि नौकरशाह से लेकर लोकशाही तक सब अपने साज-श्रृगांर में लगी हुई है। लाशों की ढेर पर वोटों की राजनीति करती सरकार जनता की नहीं रह गयी है, बल्कि अपने बाप, दादा, चच्चा, ताऊ की हो कर रह गयी है।

खेड़ा की महिलाओं में जो आक्रोश दिख रहा है उससे यही पता चलता है कि पानी सिर से उपर उठ चुका है। यू.पी. की बागडोर अब महिलाओं के हाथ में ही होगी तभी वहाँ की परिस्थितियाँ अनुकूल होंगी। वहाँ की महिलाओं का भरोसा इन राजनेताओं और लोकसेवकों पर से उठ गया है। जनता भी अपनी बेवकूफी पर पछताने के अलावा और कर भी क्या सकती है? बंदर के हाथ में बंदूक जो पकड़ा दिया है। भुगतना तो पड़ेगा ही। केन्द्र सरकार की बैसाखी इनके हाथ में है; नहीं तो इतनी बुरी स्थिति में यू पी में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाना चाहिए था।

(रचना)

 

4 comments:

  1. सुशासन का पत्ता साफ़

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  2. ख़बरें आपके लेखन की पुष्टि करती हैं !

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  3. बढिया अभिव्यक्ति।

    एक हफ़्ते से क्यों नहीं लिखा? रोज लिखना चाहिये आपको! रोज मतलब डेली।

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