Thursday, April 30, 2009

अब मैं भी हाजिर हूँ ... अपनी टूटी-फूटी के साथ

मेरे अज़ीज हिन्दी चिठ्ठाकार सज्जनों,

एक जद्दोजहद मेरे मन में बहुत दिनों से थी। ...आज उसे परे धकेलकर मैने फ़ैसला कर ही लिया। जी हाँ, मैने अपना एक अलग ब्लॉग बना लिया है। मैं हिन्दी भाषा और टाइपिंग की बहुत अच्छी जानकार नहीं हूँ। बस मुझे टूटी-फूटी ही आती है। लेकिन बातें मन में बहुत सी हैं जो आप से बाँटने का मन करता है। हिम्मत कर रही हूँ तो इसलिए कि यहाँ तक की यात्रा मैने सत्यार्थमित्र के माध्यम से की है, थोड़ा बहुत जान गयी हूँ। आप सबका लिखा पढ़ती रही हूँ और इस सब में पतिदेव का साथ भी मिलता रहा है।

अलग इसलिए होना पड़ा कि कई बार इनके मानक में मेरी टूटी-फूटी फिट नहीं बैठ पाती है। मेरे लिखे को ये ‘और सुधार के लायक’ बताकर किनारे कर देते हैं। मन मसोस कर रह जाता है।

इसे एक विद्रोह न समझा जाय बल्कि मुक्त आकाश में स्वतंत्र होकर उड़ने की व्यग्रता मान कर उत्साहबर्द्धन किया जाय। पतिदेव तो धकिया ही रहे हैं, आगे बढ़ने के लिए।

आज तीस अप्रैल को इसे प्रारम्भ करने की एक खास वजह भी है। हमारी शादी को आज दस साल पूरे हुए हैं। आज मैं कुछ नया करना चाहती थी। सोचा, क्यों न आज से एक सिलसिला शुरू हो जिसमें एक आम गृहिणी की आवाज आप लोगों तक पहुँचायी जाय..!

मैं कोई प्रोफ़ेशनल लेखिका, कवयित्री या विचारक नहीं हूँ। लेकिन अखबारों की खबरें पढ़कर, टीवी देखकर या ब्लॉग्स में इस विचित्र दुनिया की तस्वीरें देखकर मेरा मन भी परेशान होता है। कुछ बातें अनगढ़ ही सही लेकिन एक भँवर सी भीतर से उठती तो हैं।

पुछल्ला:

डॉ. अरविन्द मिश्रा ने आज हमारी जोड़ी की तस्वीर तलाश किया जो थी ही नहीं। नहीं मिली तो किसी जोड़ा-जामा टाइप फोटू की फरमाइश भी कर दिए। हम ठहरे तकनीक से पैदल, सो शादी वाली फोटू यहाँ चेंप न सके। लेकिन एकदम ताजी फोटू भतीजे से खिंचवा ली है। आप भी देखिए :)

 परिणय दशाब्दि  (2) (रचना)